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प्रपन्नामृत – चतुर्थ अध्याय

पं. यादव प्रकाशाचार्य द्वारा श्रीरामानुजाचार्य का विन्ध्य बन में त्याग

▶ एक समय अपने सभी शिष्योंको बुलाकर यादवप्रकाश बोले, “मेरी सन्निधिमें पढकर मेरे श्रुत्यर्थोंको अशुद्ध बतलानेवाला रामानुज मेरा शत्रु बन बैठा है। यह मेरे मत को खण्डित करनेके लिये ही अवतरित हुआ है। इस रामानुज का मैं कैसे वध करुँ?”

▶ यादवप्रकाश नें शिष्योंके साथ मिलकर रामानुजाचार्य के वध की योजना बनायी।

▶ तदनन्तर छोडकर चले गये रामानुजाचार्य को बुलाकर झूठी मधुर वाणी बोलकर पुन: अध्ययन के लिये बुलाया।

▶ एक दिन छली यादवप्रकाश ने रामानुजाचार्य को माघ मास निमित्त गंगाजी में स्नान के लिये प्रयाग चलनेके लिये आमन्त्रित किया।

▶ माता कांतिमति से आज्ञा लेकर रामानुजाचार्य यादवप्रकाश के साथ चल दिये।

▶ रामानुजाचार्य के भाई गोविन्दाचार्य को यादवप्रकाश की योजना का पता था, अत: रामानुजाचार्य की रक्षा करने हेतु वे भी साथमें चल दिये।

▶ एक दिन हिंसक पशुओंके जंगलमें रामानुजाचार्य को छोडकर यादवप्रकाश आगे निकल गये।

▶ गोविन्दाचार्य ने रामानुजाचार्य को बताया, “भैय्या! गंगा स्नान के बहाने आपको मारनेके लिये लेके जा रहे हैं, अत: आप को रुक जाना चाहिये।

▶ रामानुजाचार्य वहाँसे यादवप्रकाश का साथ छोडकर निकलगये।

▶ बहोत ढूँढनेपर भी रामानुज नही मिले, अत: उन्हे हिंसक पशुओंनें मारदिया होगा यह समझकर भीतरसे प्रसन्न पर उपरसे दु:ख का स्वांग रचाते हुये यादवप्रकाश उस रात्रि शांतिपुर्वक सोया।