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यतीन्द्र प्रवण प्रभावम् – भाग १००

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः

यतीन्द्र प्रवण प्रभावम्

<< भाग ९९

श्रीवरवरमुनि स्वामीजी के वियोग में शिष्यों को पीड़ा हुई 

तत्पश्चात जैसे कि कहा गया हैं “कदिरवन् पोय् गुणपाल् सेर्न्द महिमै पोल्” (जैसे सूर्य कि महानता पूर्व दिशा में पहुँचती हैं), पूर्व दिशा में सूर्य का अस्त होना। शिष्य जैसे जीयर् नायनार्, कन्दाडै अण्णन् आदि को बहुत दु:ख हुआ जैसे कि इस पाशुर में लाया गया हैं 

चीयर् एऴुन्दरुळिविट्टार् चेगमुऴुदुम्
पोयिरुळ् मीळप् पुगुन्ददे तीय​
विनै नैय वेम्बुलनाल् ईड​ऴिन्दु माय्वोर्
अनैवार्क्कुम् एदो अरण्

(श्रीवरवरमुनि स्वामीजी कृपाकर श्रीवैकुण्ठ को पधारे। पूरे संसार में अंधकार छा गया था। जो अपने बुरे कर्मों से पीड़ित होते हैं और अपने आप को इंद्रीयों के मार्ग में खो देते हैं उनके लिये कौनसा बचाव हैं?) अपनी दासता की विशेषता के अनुरूप उन्होंने क्षौर (सिर मुड़वाना), स्नान कर और फिर मठ में प्रवेश किया। उन्होंने स्वामीजी के अनुपस्थिति से मठ में सुनापन देखा और अत्याधिक व्यथित थे। उन्होंने पाशुरों का अनुसंधान कर एक दूसरे को सांत्वना दिये। उनकी वाणी टूट रही थी और बिना रूके नेत्रों से अश्रु बह रहे थे। श्रीवरवरमुनि स्वामीजी के महिमा अनुसार उन्होंने उनका तिरुवद्ययनम् किया (श्रीवैकुण्ठ पधारने से १३वें दिन तक कि सभी विबिन्न अनुष्ठान का संचालन किया), निर्धारित प्रणाली के अनुसार पवित्र जल और प्रसाद पाया। फिर उन्होंने श्रीवरवरमुनि स्वामीजी द्वारा जो उन्हें कैङ्कर्य दिया गया हैं उसे किया। 

तत्पश्चात श्रीरङ्गनाथ भगवान जिन्हें इक्ष्वाकु वंश के लिये धन के रूप में जाना जाता हैं ने जीयर् नायनार्, को (श्रीवरवरमुनि स्वामीजी के पौत्र) को अपने वंश का धन श्रीरङ्गराज और मठ दिया जिसे श्रीवरवरमुनि स्वामीजी को दिया गया था जिसे श्रीवरवरमुनि स्वामीजी ने भगवान को लौटा दिया था। इसके अलावा भगवान ने जीयर् नायनार्, को श्रीतीर्थ, दिव्य पुष्पहार, दिव्य वस्त्र, श्रीशठारी, आदि दिया और आशीर्वाद प्रदान किया। यह देख जिन्हें श्रीवरवरमुनि स्वामीजी में अत्याधिक श्रद्धा थी बहुत प्रसन्न हुए और जीयर् नायनार्, को स्वयं जीयर् माना और उनकी निरन्तर पूजा करने लगे। 

जीयर नायनार श्रीभाष्य और तिरुवाय्मोऴि​ ईडु को सीखा 

श्रीवरवरमुनि स्वामीजी के आज्ञानुसार कन्दाडै अण्णन् ने जीयर् नायनार्, को तिरुवाय्मोऴि ईडु सिखाया। श्रीप्रतिवादि भयङ्करम्​ अण्णा स्वामीजी ने भी जीयर् नायनार्, को श्रीभाष्यम् (ब्रह्म सूत्र पर श्रीरामानुज स्वामीजी द्वारा लिखा हुआ व्याख्यान) सिखाया। यह करते हुए उन्होंने कृपाकर अपने कर्तव्य का पालन किये जैसे इस श्लोक में उल्लेख हैं 

श्रीमान् सुन्दरजामातृ मुनिः पर्याय भाष्यकृत्।
भाष्यं व्याकुरुते तस्य श्रोतृकोडौ ममान्वयः॥

(श्रीवरवरमुनि स्वामीजी जो श्रीरामानुज स्वामीजी के अपरावतार हैं और जो कैङ्कर्य श्रीमान (कैङ्कर्य के धनी) हैं स्वयं श्रीभाष्यम् के अर्थों को समझा रहे हैं। मैं उस गोष्टी से सम्बन्ध रखता हूँ जो श्रीभाष्यम् को सीखते हैं)। फिर उन्होंने पोळिप्पाक्कम् पोरेट्रु नयनार् को श्रीभाष्यम् सिखाया जो तिरुपति में निवास करते हैं। उन्होंने परवस्तु श्रीनिवासाचार्य को भी तिरुवाय्मोऴि ईडु  सिखाया जो भट्टर् पिरान् जीयर् के वंशज हैं, साथ ही साथ उनके सब्रह्मचारी परवस्तु अऴियमणवाळ जीयर् को भी सिखाया, इस प्रकार प्रगट किये कि वें वास्तव में तिरुवाय्मोऴि नायनार् हैं। उन्होंने प्रतिवादि भयङ्करम्​ कि अपनी प्रसिद्धि को प्रदर्शित कर रामानुज सिद्धान्त (श्रीरामानुज स्वामीजी के तत्त्व) कि रक्षा किये।  

आदार – https://srivaishnavagranthams.wordpress.com/2021/10/26/yathindhra-pravana-prabhavam-100/

अडियेन् केशव् रामानुज दास्

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