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कृष्ण लीलाएँ और उनका सार – १७ – बाँसुरी बजाना

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कृष्ण की मुख्य लीलाओं में से एक लीला बांसुरी बजाना भी है। उनके कर कमलों में या कटिभाग में सदैव बांसुरी विद्यमान रहती है। जब भी कोई कृष्ण के बारे में सोचते हैं तो उन्हें बांसुरी का विचार आ जाता है। सामान्यतः ग्वाल-बाल अपने साथ बांसुरी रखते थे। कृष्ण बांसुरी बजाने के साथ कार्य पूर्ण करते थे, प्रथम गायों की संरक्षा और गायों और बछड़ों को अपने पास बुलाया करते थे। द्वितीय अपनी बांसुरी की मधुर ध्वनि से गोपाङ्गनाओं को अपनी ओर आकर्षित करते थे।

पेरियाऴ्वार् अपने पेरिय तिरुमोऴि में बहुत ही सुन्दर दशक “नावलम् पेरिय तीवु” में कृष्ण के द्वारा बांसुरी बजाने का वर्णन बहुत ही सुन्दर किया है। वे हमारे अन्तर्दृष्टि के सामने साक्षात् चित्रित कर देते हैं कि कैसे कृष्ण बांसुरी बजाते हैं, कैसे वे अपना वाम स्कन्ध नीचे की ओर झुकाते हैं, कैसे गोपाङ्गनाएँ उस ध्वनि को सुनकर मन्त्रमुग्ध होकर सभी बंधनों को पारकर खींची चली आती हैं, कैसे अप्सराएँ रम्भा आदि मन्त्रमुग्ध होकर अपना नृत्य भूल जाती हैं, कैसे ऋषि नारद अपना वाद्य बजाना भूल गए और उस मधुर तान को सुनते रहे, कैसे पक्षियों के झुंड शांतिपूर्ण माधुर्य को सुनते रहे, कैसे हिरण, गाय आदि पशु अपना‌ भोजन छोड़ कर उस ध्वनि को सुनते रहे, कैसे वृक्षों से शहद बहने लगा और कैसे उस ध्वनि से मोहित होकर शाखाएँ भी नीचे झुकने लगीं।

कुलशेखर आऴ्वार् पेरुमाळ् तिरुमोऴि में कहते हैं “कुऴैन्दु कुऴल् इनिदु ऊदि वन्दाय्” (आप विनम्रता से आएँ, मधुर बांसुरी बजाते हुए)। पेयाऴ्वार् ने अपने मून्ऱाम् तिरुवन्दादि में कहते हैं “कोवलनाय् आनिरैगळ् मेय्त्तुक् कुऴलूदि” (एक ग्वाला होने के कारण श्रीकृष्ण गायें चराते और बांसुरी बजाते थे)। तिरुवाय्मोऴि में नम्माऴ्वार (श्रीशठकोप स्वामी जी) ने कहा है “केयत् तिङ्गुऴल् ऊदिट्रुम्” (अपनी बांसुरी में मधुर तान बजाते हुए)। ऐसे ही अन्य आऴ्वारों ने भी कृष्ण को बांसुरी बजाते हुए स्वरूप को वर्णन किया है।

सार-

  • कृष्ण के संभावित वचनों से अधिक उनके द्वारा बांसुरी वादन की महिमा को गाया है। यहाँ आचार्य के रूप में बांसुरी को बताया है। अर्थात् आचार्य के माध्यम से भगवान को सुनना और आनन्द का अनुभव करने की महिमा गाई है।
  • यदि भगवान की अनन्य कृपा हो तो विवेकी, अविवेकी, नभचर, वनचर, वृक्ष आदि अभिन्न रूप से सभी पिघल जाएँगे।

अडियेन् अमिता रामानुजदासी

आधार – https://srivaishnavagranthams.wordpress.com/2023/09/22/krishna-leela-17/

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