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चरमोपाय निर्णय – उद्धारक आचार्य

॥ श्री: ॥
॥ श्रीमते रामानुजाय नमः ॥
॥ श्रीमद्वरवरमुनयेनमः ॥
॥ श्रीवानाचलमहामुनयेनमः ॥
॥ श्रीवादिभीकरमहागुरुवेनमः ॥

उद्धारक आचार्य

जैसे हमने पहिले देखा कि आचार्य दो प्रकार के होते है, उद्धारक आचार्य और उपकारक आचार्य ।

उद्धारक आचार्य याने जो इस संसार के भव बंधन को छुड़ाकर परमपद दिलाते हैं। उद्धारकत्व तीन विभूतियों में विद्यमान है ।

  1. श्री भगवान
  2. श्री शठकोप स्वामीजी
  3. श्री रामानुज स्वामीजी

जो नित्य विभूति (परमपद) और लीला विभूति (संसार) को अपने अधीन कर सकते हैं उनमे मात्र उद्धारकत्व गुण परिपूर्ण रूप से विद्यमान होता है ।

वेदों में और अन्य जगह पर उल्लेख आता है कि उभय विभूति को संभालनेवाले श्री भगवान ही है और

“ श्री विष्वक्सेन संहिता ” में भगवान कहते हैं “अस्य ममश शेषम ही विभूतिरुभयात्मिका ”, इसका अर्थ है दोनों विभूति मेरे और अम्माजी के आधीन है ।

श्री शठकोप स्वामीजी श्री सहस्त्रगीति (६.८.१) में कहते है कि, “ पोन्नुलगलिरो भुवनीमुजूथालिरो ”, याने भगवान कि कृपा सेमै दोनों विभूतियों को संभाल सकता हूँ ।

श्री रंगनाथ भगवान ने श्री रामानुज स्वामीजी को उभय विभूति साम्राज्यप्रदान किया ।
( इसलिये रामानुज स्वामीजी को “उडयवर” नाम से भी जाना जाता है ) इससे यह स्पष्ट हो जाता है कि रामानुज स्वामीजी भी उद्धारक आचार्य है ।

श्रीरंगनाथ भगवान रामानुज स्वामीजी को दोनों विभूतियों के नायक की उपाधि दे रहे है

 

इन तीनो विभूतियों में से उद्धारकत्व श्री रामानुज स्वामीजी में विशेष रूप से विद्यमान है । जब श्री भगवान  संसारी जीवात्मावों पर कृपा करने के लिये श्रीशठकोप स्वामीजी को इस संसार में भेजते है, केवल ३२ वर्षों में ही शठकोप स्वामीजी भगवान से दूर होने के कारण विरह न सहकर चिल्लाकर रोने लगे,“ कुविक्कोल्लुम कालम इन्नुम कुरूगातौ ”, याने कब मुझे इस संसार से परमपद कि ओर ले चलेगें ।

“ एन्नाल यनुन्नै इनी वंतु कुड़ुवनै ” याने कब मै परमपद में आकर आपकी सेवा करूँगा ।

“ मंग्ग वोट्टू उन मामयै ” याने मेरे इस प्राकृत शरीर ( जिसमे आपका इतना प्रेम है ) को छुड़ाइये । जब की भगवान का श्री शठकोप स्वामीजी के प्रत्यक्ष विग्रह में इतना लगाव था तो भी वे इस प्राकृत शरीर को छुड़ाने के लिये कहते है और प्रार्थना करते है कि मुझे परमपद में स्थान दिजिये जहाँ पर मुझे दिव्य शरीर प्राप्त होगा । श्रीशठकोप स्वामीजी लीला विभूति से प्रस्थान करके नित्य विभूति में विराजमान हो गये ।

उनके इस ( संसारी जीवात्माओं के उद्धार ) उदेश्य कि पूर्ति हेतु भगवान ने श्री रामानुज स्वामीजी को १२0 वर्षों तक इस लीला विभूति में विराजमान कराया था ।

श्री रामानुज स्वामीजी के उद्धारकत्व गुण के कारण श्री शठकोप स्वामीजी के समय की अपेक्षा श्री रामानुज स्वामीजी के समय में ज्यादा लोग श्रीवैष्णवता को अपनाने लगे ।

स्वयं श्री शठकोप स्वामीजी सहस्त्रगीति के पाशुर (५.२.१) में कहते है ,

“कड़ल्वन्नन भूत्ंगल मन्मेल मलीयप्पुगुन्तु इचै पाडीयाडी एंग्गुम यूलीतर कण्डोंम”

इसका अर्थ है आनेवाले दिनों में ( कलियुग में श्री रामानुज स्वामीजी का अवतार होगा ) भक्त लोग भगवान के बिना एक क्षण भी व्यतीत नहीं करेगें, वे सभी जगह भगवद गुणानुवाद करेगें ।इससे यह स्पष्ट होता है कि श्रीरामानुज स्वामीजी ही सबके उद्धारक है ।

कृपामात्र प्रसन्नाचार्यत्व पूर्ण रूप से श्री रामानुज स्वामीजी मै विद्यमान हैं।रामानुज स्वामीजी दूसरो के दुःखो को देखकरस्वयं कष्ट सहन करते हैं और उनपर निर्हेतुक कृपा करते है। ऐसे विशेष गुण बहुत कम आचार्यों में देखे जाते है । श्रीकृष्ण भगवान आचार्य होते हुये भी स्वानुवृत्ति प्रसन्नाचार्य बनकर रहते हैं । गीता में ( २.७ ) जब अर्जुन भगवान से कहते हैं कि मै आपका शिष्य हूँ और आप मेरे कल्याण हेतु मुझे सब बताइये । भगवान स्वानुवृत्ति प्रसन्नाचार्य होने के कारण भगवान अर्जुन को उपदेश ( ४.३४ ) करते हैं कि आचार्य कि शरण में जाओ और उनको कैंकर्य करके प्रसन्न करो और उनसे सारतम ज्ञान सीखो । इससे यह मालूम होता है कि कृपामात्रप्रसन्नाचार्यत्व सिर्फ शठकोप स्वामीजी और रामानुज स्वामीजी में ही पूर्ण रूप से विद्यमान है ।

उपरोक्त सभी बातों को जानने पर यह सारांश निकलता है कि भगवान के पास उद्धारकत्व होने पर भी वे स्वानुवृति प्रसन्नाचार्य बनकर रहते है, श्री शठकोप स्वामीजी में उद्धारकत्व है और संसारी जीवात्माओं पर विशेष कृपा भी करते है। लेकिन भगवान का वियोग सहन नहीं कर पाने के कारण बहुत कम समय में ही इस संसार से प्रस्थान कर गये  । दूसरी ओर श्री रामानुज स्वामीजी जो श्री शठकोप स्वामीजी के चरणारविन्द हैं, दुःखी संसारी जीवात्माओं पर विशेष कृपा करने के लिये इस संसार में विराजमान थे । इन सभी कारणों से यह स्पष्ट हो जाता है कि श्री रामानुज स्वामीजी कृपामात्र प्रसन्नाचार्य है और परिपूर्ण रूप से उद्धारक आचार्य भी है ।

– अडियेन सम्पत रामानुजदास,

– अडियेन श्रीराम रामानुज श्रीवैष्णवदास

source : http://ponnadi.blogspot.in/2012/12/charamopaya-nirnayam-uththaraka-acharyas.html