कृष्ण लीलाएँ और उनका सार – ३५ – स्यमन्तक मणिलीला, जाम्बवती व सत्यभामा कल्याणम्

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद् वरवरमुनये नमः श्रीवानाचलमहामुनये नमः

श्रृंखला

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सूर्य भक्त एक सत्राजित नामक राजा था। उसकी भक्ति से प्रसन्न होकर सूर्यदेव ने स्यमन्तक मणि दी। वह कांतिमय रत्न अपार धन प्रदान करने वाला है। सत्राजित ने उसे सांकल में पिरोकर पहन लिया और आनन्द से रहने लगा।

एक बार द्वारका नगरी में आने पर वह रत्न धारण करने से अत्यंत प्रकाशित हो रहा था। वहाँ उसने उस मणि को एक वेदी पर रखा ताकि प्रत्येक उसको देख सके। उस मणि को देखकर श्रीकृष्ण ने सत्राजित से उग्रसेन को उपहार में देने का अनुरोध किया। परन्तु सत्राजित ने मना कर दिया।

एक बार सत्राजित के भाई ने वह मणि धारण कर आखेट के लिए गया। एक सिंह ने उसे मार दिया और मणि ले ली।उस सिंह ने उस गुफा में प्रवेश किया जहाँ एक महान श्रीराम भक्त जाम्बवान जी रहते थे। जाम्बवान जी ने उस सिंह को मारकर वह मणि ले ली।

द्वारका नगरी में सत्राजित अपने भाई को न देखने के कारण उसने सोचा कि श्रीकृष्ण ने उसके भाई का वध कर मणि ले ली है। उसने इस बात को सभी ओर फैला दिया।यह सुनकर श्रीकृष्ण इस आक्षेप को दूर करने का प्रयास करने लगे। वे वन में मणि खोजने गये जहां प्रसेन का शव प्राप्त हुआ और सिंह के पदचिह्न भी दिखाई दिए। इस प्रकार वे सारा वृत्तान्त समझ गये। अब उन पदचिह्नों का अनुसरण करते हुए जाम्बवान की गुफा तक पहुँच गये, जहाँ जाम्बवान की पुत्री जाम्बवती मणि के साथ खेल रही थी। जैसे ही वे जाम्बवती से मणि लेने लगे वह जोर से चिल्लाईं। उसकी ध्वनि सुनकर जाम्बवान वहाँ आए और श्रीकृष्ण से युद्ध करने लगे और यह युद्ध अट्ठाईस दिन तक चलता रहा। अंततः भगवान अपने वास्तविक स्वरूप में प्रकट हुए तो जाम्बवती ने उनसे क्षमायाचना की और मणि सौंप दी। जाम्बवान ने अपनी पुत्री जाम्बवती का विवाह श्रीकृष्ण के साथ कर दिया।

तत्पश्चात् श्रीकृष्ण ने द्वारका लौटकर सारा वृत्तान्त सत्राजित को सुनाया और मणि देदी। अपनी भूल का आभास होने पर सत्राजित ने क्षमा याचना की और अपनी पुत्री सत्यभामा का विवाह श्रीकृष्ण से कर दिया। सत्यभामा भूमिपिराट्टि का प्रत्यक्ष अवतार हैं। श्रीकृष्ण ने सत्यभामा से विवाह किया।

फिर श्रीकृष्ण ने लाक्षागृह में पाँच पांडवों के जलने का समाचार मिलते ही वे बलराम के साथ हस्तिनापुर को चले गए। उस समय कृतवर्मा और अक्रूर के द्वारा उत्तेजित शतधन्वा ने सत्राजित का वध कर दिया और मणि छीन ली। इससे अत्यंत द:खी होकर सत्यभामा श्रीकृष्ण के पीछे हस्तिनापुर गई। श्रीकृष्ण ने लौटकर शतधन्वा का वध कर दिया और मणि अक्रूर को दे दी। इसके पश्चात् श्रीकृष्ण ने अक्रूर को द्वारका पधारने का आमंत्रण दिया और मणि दिखाने को कहा, मणि देखकर फिर से उनसे सुरक्षित रखने को कहा।

नम्माऴ्वार (श्रीशठकोप स्वामी जी) तिरुवाय्मॊऴि के एक पासुर, “मनिसरुम् मट्रुम् मुट्रुमाय्” और, “वीट्रिरुन्दु एऴुलगुम्” की टिप्पणी में नम्पिळ्ळै वर्णित करते हैं कि भगवान अपने अवतारों के समय अपमानित होने पर भी, जैसे कि “उन्होंने स्यमन्तक मणि चुराई”, यहाँ आत्माओं की सहायता करने के लिए इस संसार में अवतरित होते हैं।

सार-

  • भगवान ने जाम्बवती और सत्यभामा पिराट्टि से विवाह करने के लिए अद्भुत लीलाएँ की।
  • भगवान जब इस संसार में अवतरित होते हैं तब अज्ञात जन उनका अपमान करते हैं। तब भी भगवान अपने भक्तों की सहायता के लिए पुनः पुनः अवतार लेते हैं।

अडियेन् अमिता रामानुजदासी

आधार: https://srivaishnavagranthams.wordpress.com/2023/10/11/krishna-leela-35/

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