श्रीवचनभूषण – सूत्रं १२

श्री: श्रीमते शठकोपाय नमः श्रीमते रामानुजाय नमः श्रीमद्वरवरमुनये नमः श्रीवानाचल महामुनये नम:

पूरि शृंखला

पूर्व

अवतारिका

श्रीपिळ्ळैलोकाचार्य स्वामीजी कृपाकर समझाते हैं कि आपकी सलाह दोनों ईश्वर और चेतन को लाभ पहूँचायेगी। 

सूत्रं१२

उपदेशत्ताले  इरुवरुडैयवुम्  कर्म पारतंत्रयम् कुलैयुम्। 

सरल अनुवाद

उनकी सलाह से, ईश्वर और चेतन दोनों की कर्म पर निर्भरता नष्ट हो जाएगी।

व्याख्यान

उपदेशत्ताले

वह हैं – जब वह दोनों  ईश्वर और चेतनों को उनकी स्थिति से मेल खाने कि सलाह प्रदान करती हैं, तो दोनों के कर्म पारतंत्रय (अ) चेतन जो अपने कर्म से खिंच जाता हैं और भगवान से अपना चेहरा दूर कर लेता हैं और (आ) ईश्वर जो मुख्य रूप से ऐसे चेतन के कर्म के आधार पर प्रतिक्रिया का वचन लेता हैं और उसकी रक्षा करने से इनकार कर देता हैं तो उसको निकाल दिया जाएगा।

चेतनों का कर्म पारतंत्रयम  के अज्ञान के कारण हैं जो अचित के साथ शाश्वत सम्बन्ध पर आधारित हैं; ईश्वर का कर्म  पारंतंत्रय उनके स्वयं के व्रत के कारण हैं जो उनकी सर्वोच्च स्वतंत्रता पर आधारित हैं। हालांकी ये बिना किसी प्रारम्भ के मौजूद हैं, परन्तु पिराट्टी के पुरुषकार के बिना इन्हें समाप्त करने में कोई गलत नहीं हैं, जो अपने मातृ सम्बन्ध  के कारण चेतन के प्रति भरोसेमंद हैं और जो अपने पति पत्नी के सम्बन्ध के कारण ईश्वर के प्रति बहुत प्रिय हैं उसने चेतना और ईश्वर दोनों को क्रमशः समर्पण करने और समर्पण स्वीकार करने के लिए ग्रहणशील बनाया।

अडियेन् केशव् रामानुज दास्

आधार – https://srivaishnavagranthams.wordpress.com/2020/12/18/srivachana-bhushanam-suthram-12/

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