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चरमोपाय निर्णय – रामानुज स्वामीजी का वैभव प्रकाशन

॥ श्री: ॥

॥ श्रीमते रामानुजाय नमः ॥
॥ श्रीमद्वरवरमुनयेनमः ॥
॥ श्रीवानाचलमहामुनयेनमः ॥
॥ श्रीवादिभीकरमहागुरुवेनमः ॥

चरमोपाय निर्णय –  श्री रामानुज स्वामीजी का वैभव प्रकाशन

 

श्री कुरेश स्वामीजी, रामानुज स्वामीजी की आज्ञानुसार वरदराज स्तव की रचना करके वरदराज भगवान को सुनाते हैं।श्री कुरेश स्वामीजी को भगवान उनकी खोई हुई आँखों को देना चाहते थे, तब श्री कुरेश स्वामीजी ने कहा इन नेत्रों मे आपके और रामानुज स्वामीजी के दर्शन स्थिर हो गए है, अब आंखो की कोई आवश्यकता नहीं है। परमपद में भगवान के साथ रहनेवाले अम्माजी, नित्य और मुक्त जनों के साथ स्थान देने के लिए कहा ।

श्री कुरेश स्वामीजी की इच्छानुसार वरदराज भगवान ने मोक्ष दे दिया और कहा कि मैं परमपद का राजा हूँ मैने पूर्ण अधिकार श्री विष्वक्सेनजी को दिया है, मैं पूर्ण रूप से स्वतंत्र नहीं हूँ, तुम नित्यसुरियों के मुख्यस्थ श्री रामानुज स्वामीजी के पास जाओ और उनसे प्रार्थना करो, वे तुम्हे इस संसार से परमपद की ओर लेकर जायेगें ।

 

इस पूर्ण विषय को श्री रामानुज स्वामीजी को सुनाकर विनती करते हुये कहते अब मुझे भगवान की आज्ञा का पालन करने दीजिये । श्री कुरेश स्वामीजी की आर्तता को देखते हुये उनके कान में द्वय मंत्र सुनाते हैं और कहते “नलम अंतम इलतोर नडु पुगुवीर”, याने अत्यन्त शोभायमान श्री परमपद के लिये प्रस्थान कीजिये ।

श्री कुरेश स्वामीजी कहते हैं कि नालुरान ( कुरेश स्वामीजी का शिष्य जिसके कारण स्वामीजी को नेत्र खोने पड़े ) को भी मोक्ष दीजिये । श्री रामानुज स्वामीजी कहते है “ जैसे भगवान कृष्ण ने घंटाकर्ण के साथ आये हुये भाइयों को भी मोक्ष दिया वैसे ही जब मैने तुम्हे अपना लिया, नालुरान को अपने आप अपनाया जायेगा ।” इसके बाद कुरेश स्वामीजी ने परमपद के लिये प्रस्थान किया ।

 

यहाँ पर श्रीवरदराज भगवान और रामानुज स्वामीजी ने स्वयं अपना वैभव प्रकाशित किया।

श्री वरदराज भगवान यह भी दर्शाते हैं कि रामानुज स्वामीजी आदिशेष के अवतार है ।

 

श्री कुरेश स्वामीजी का वैकुण्ठोत्सव करने के लिये रामानुज स्वामीजी पराशर भट्टर स्वामीजी को आज्ञा करते है। वैकुण्ठोत्सव समाप्ति के बाद रंगनाथ भगवान का मंगलाशासन करने के लिये जाते है, तब रंगनाथ भगवान पराशर भट्टर स्वामीजी से कहते हैं “ पिताजी के वियोग में दुःखी मत होना, मैं आपके पिता के रूप में हूँ। ” ऐसे कहकर पराशर भट्टर स्वामीजी को पुत्र के रूप में स्वीकार करते है । इस जगत में रहते हुये कोइ भी चिन्ता मत करो, पूर्णरूप से आपका देखभाल किया जायेगा। श्री रामानुज स्वामीजी के यहाँ पर विराजमान रहते हुये मोक्ष की चिन्ता मत करो, सिर्फ तुम यही मनन करो की रामानुज स्वामीजी ही मेरे रक्षक है और सदैव उनकी कृपा का अनुभव करो।

 

यहाँ पर रंगनाथ भगवान श्री रामानुज स्वामीजी का वैभव प्रकाशित करते है ।

जब श्री रामानुज स्वामीजी शिष्य वर्ग के साथ दिव्यदेश यात्रा करते हुये आलवार तिरूनगरी मे प्रवेश करते हैं ।वहाँ पर श्रीशठकोप स्वामीजी की सन्निधि मे कन्नीण शिरताम्बू का निवेदन करते हैं, शठकोप स्वामीजी अत्यन्त प्रसन्न होकर अर्चक द्वारा श्री रामानुज स्वामीजी को आगे बुलाते हैं और कहते हैं कि अपने सिर को मेरे चरणारविन्द में रखो। श्री रामानुज स्वामीजी ने वैसे ही किया ।

 

श्रीशठकोप स्वामीजी सभी स्थानिक श्रीवैष्णवों को बुलाते हैं और कहते हैं कि जो मेरा सम्बन्ध चाहता है, उसे श्री रामानुज स्वामीजी के चरणारविन्दो का आश्रय लेना पड़ेगा,जो की मेरे चरणारविन्दो को प्रतिबिम्बित करते है । वे इस संसार के बंधन से मोक्ष देते है । जब आप लोग रामानुज स्वामीजी का आश्रय ग्रहण करेगें तब मैं समझुगाँ कि आप लोगो ने मेरा भी आश्रय लिया है । इस दिन से श्री शठकोप स्वामीजी के चरणारविन्दो को “ रामानुज ” कहा जाता है ।

श्री शठकोप स्वामीजी श्री रामानुज स्वामीजी (अम्माजी की तरह ) के साथ शयन कर रहे है,

श्री वैकुंठ एकादशी के दिन आलवार तिरुनगरी के विशेष दर्शन

 

मधुरकवि स्वामीजी सर्वज्ञ थे । श्री शठकोप स्वामीजी के भावों को जाननेवाले थे । कन्नीण शिरताम्बू में “ मेविनेन अवन पोन्नडी ”,कहते हैं, याने शठकोप स्वामीजी के स्वर्ण रूपी चरणारविन्दो की शरण लेता हूँ ।

यहाँ पर कमलरूपी चरणारविन्द नहीं बताया गया ( समान्यतः ऐसे ही बोला जाता है ) ,चरणारविन्दो को स्वर्ण से संबोधिंत करने का कारण यह है कि स्वर्ण को श्रेष्ठ माना गया है, जो सभी को अतिप्रिय है, सभी को ज्यादा से ज्यादा पाने की इच्छा रहती है, जो सभी के पास रहता है, जो स्त्री और पुरुष को प्रिय है, जिसको विशेष ध्यान देकर देखभाल किया जाता है, जिसके खो जाने पर लोग परेशान होते है। ऐसे सभी गुण श्री रामानुज स्वामीजी में भी हम देख सकते हैं ।

आप –

  • “ कारूण्यगुरूसुत्मो यतिपति ”,विशेष कृपा सब लोगों पर करते है , इसलिये सबसे श्रेष्ठ हो ।
  • ७४ पीठाधीशों द्वारा सम्मानित होकर पूजित हो ।
  • मोक्ष को प्रदान करनेवाले हो ।
  • रहस्य ग्रंथो के सारतम अर्थ को इच्छुक लोगो को बतानेवाले हो ।
  • अनेक श्रीवैष्णवों के साथ मिलकर भगवान में उनकी निष्ठा बढानेवाले हो ।
  • शैव राजा के समय मे दाशरथी स्वामीजी द्वारा रक्षा किये गए हो।
  • जिनके परमपद गमन का समाचार सुनकर अनेक श्री वैष्णवों ने अपना प्राण त्याग दिया हो ।

 

जब श्री रामानुज स्वामीजी ने परमपद के लिये प्रस्थान किया अनेक शिष्यों ने उनके वियोग में अपने प्राण त्याग दिये । कनीयनूर सीरियाचन रामानुज स्वामीजी के शिष्य थे, कुछ समय के लिये कैंकर्य हेतु अपने ही गाँव मे विराजमान थे । कुछ दिनों बाद श्रीरंगम की ओर श्री रामानुज स्वामीजी के पास जा रहे थे । रास्ते मे किसी श्रीवैष्णव से उन्होंने अपने आचार्य श्री रामानुज स्वामीजी के स्वास्थ के बारे में पूछा । तब श्रीवैष्णव ने रामानुज स्वामीजी के परमपद गमन का समाचार सुनाया । उसी क्षण कनीयनूर सीरियाचन ने “ येम्पुरूमानार तिरूवडिगले शरणम ” ( रामानुज स्वामीजी के चरणारविन्दो कि शरण ग्रहण करता हूँ ) कहकर परमपद के लिये प्रस्थान किया ।

इलयविल्ली ( श्री रामानुज स्वामीजी के माशी के बेटे भाई थे ) तिरूप्पेरूर में विराजमान थे । एक दिन उनके स्वप्न में आया कि श्री रामानुज स्वामीजी दिव्य विमान में विराजमान होकर आकाश की ओर बढ़ रहे है । परमपदनाथ भगवान हजारों नित्यसुरिगण, शठकोप स्वामीजी, नाथमुनी स्वामीजी और अनेक आचार्यगण वाद्य गान करते हुये श्री रामानुज स्वामीजी का परमपद में स्वागत कर रहे है । निद्रा से उठकर अपने भाई को कहते है कि श्री रामानुज स्वामीजी दिव्य विमान में विराजमान होकर परमपद के लिये प्रस्थान कर रहे है । मैं उनके अनुपस्थिति में यहाँ पर नहीं रह सकता। “ यम्पुरमानार तिरुवडिगले शरणम ” कहकर परमपद के लिये प्रस्थान किया ।

ऐसे अनेक शिष्य थे जो श्री रामानुज स्वामीजी का वियोग सहन नहीं कर सके ओर अपना शरीर त्याग दिया । जो शिष्य स्वामीजी के अंतिम समय में साथ में थे उनको स्वामीजी ने आज्ञा किया कि मेरे वियोग में शरीर त्यागना नहीं, आगे तुम लोगो को संप्रदाय का प्रचार-प्रसार करना है। स्वामीजी की आज्ञा को पालन करते हुये अनेक शिष्यजन  कैंकर्य मे लग गये।

यहाँ आचार्य के वियोग में शिष्यजन अपना शरीर त्यागते है, यह रामानुज स्वामीजी के वैभव को प्रकाशित करता है ।

 

– अडियेन सम्पत रामानुजदास,

– अडियेन श्रीराम रामानुज श्रीवैष्णवदास

source : http://ponnadi.blogspot.in/2012/12/charamopaya-nirnayam-ramanujars-glories.html