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कृष्ण लीलाएँ और उनका सार – ३७ – खांडव वन का अग्निदहन, इंद्रप्रस्थ का निर्माण

। ।श्री: श्रीमते शठकोपाय नम: श्रीमते रामानुजाय नम: श्रीमत् वरवरमुनये नमः। ।

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पाँच पांडव वन में निर्वासन के पश्चात् लौट आए हैं और एक वर्ष का अज्ञातवास कर रहे हैं यह सूचना प्राप्त करते ही कृष्ण सात्यकि और अन्य यादवों के साथ, उनसे मिलने इन्द्रप्रस्थ गये और पांडवो से मिलकर अति प्रसन्न हुए। उन्होंने उनसे बहुत प्रेम से बात की, पांडवों की पत्नी द्रौपदी ने भी सहर्ष कृष्ण को प्रणाम किया। कृष्ण ने अपने बुआ कुंती को प्रणाम कर उनसे वृत्तान्त सुना। वह कृष्ण की बहुत बड़ी भक्त थीं। उन्होंने कृष्ण को अपनी सारी पीड़ा सुनाई और कहा कि उनकी कृपा से सब ठीक हो गया है।

इस इंद्रप्रस्थ का निर्माण पांडवों के लिए कृष्ण की कृपा से किया गया था, आइए इसका इतिहास जानते हैं।
एकबार जब कृष्ण और अर्जुन एक साथ थे तब अग्निदेव एक ब्राह्मण के रूप में उनके पास आए और कहा कि वे बहुत भूखे हैं। कृष्ण और अर्जुन ने उनसे कहा, “आपको जितना चाहे खा सकते हैं”। तत्पश्चात् उसने अपने वास्तविक स्वरूप में आकर कहा कि वह खांडव वन का पूर्ण उपभोग करना चाहता है। यह वन इन्द्र की सम्पत्ति है जो उसे प्रिय थी। परन्तु वहाँ बहुत भयानक जानवर थे। कृष्ण ने अपने हृदय में विचार किया कि जो भूमि पर अनावश्यक भार है वह अग्निदेव भस्म कर दें। भगवान के आदेशानुसार अग्निदेव ने पूरे वन को भस्म कर दिया और बहुत से दुष्ट जानवरों का नाश हो गया। जो जानवर वहाँ से भागा उसे कृष्ण और अर्जुन ने मार डाला। इन्द्र ने गहन वर्षा करके रोकने का प्रयास किया। तब भी वह कुछ नहीं कर सका। मय (एक राक्षस मूर्तिकार) वहाँ से भाग निकला, उसकी अर्जुन ने रक्षा की। कहा जाता है कि उसी ने इन्द्रप्रस्थ का बाद में निर्माण किया। दुर्योधन उसी मायावी महल में फिसलकर गिर गया और इसके लिए द्रौपदी द्वारा उसका अपमान किया गया। यह महाभारत युद्ध का एक महत्वपूर्ण कारण बना। तक्षक नामक सर्प जो भाग गया था उसने कुरुवंश के प्रति अपने द्वेष के कारण परिक्षित से जो अर्जुन के पौत्र थे, प्रतिशोध लिया।

तिरुमङ्गै आऴ्वार् ने पॆरिय तिरुमोऴि में खांडव वन के जलने का वर्णन किया है, “काण्डावनम् ऎन्बदोर् काडु अमरर्क्करैयन् अदु कण्डवन् निऱ्-क मुने मून्डार् अऴल् उण्ण मुनिन्ददुवुम्” (सर्वेश्वरन् ने कृपा करते हुए अग्निदेव के द्वारा उस वन को भस्म करने के लिए उत्सुकता दिखाई जो इन्द्र का था, जिसे खांडव वन के नाम से जाना जाता है, जिसे कोई भी नष्ट नहीं कर सकता था, अब उसी के सामने उसे नष्ट होते देख रहा था।)

सार-

  • हमारे प्रत्येक कर्म के अप्रत्याशित फल भविष्य में मिलेंगे। तक्षक नाग जो खांडव वन की अग्नि दहन से प्रभावित हुए, उसके द्वारा कई वर्षों के पश्चात् परीक्षित प्रभावित हुए। द्रौपदी के द्वारा दुर्योधन का अपमान किये जाने पर महाभारत युद्ध हुआ।
  • भगवान भूमि के भार को कम करने के लिए केवल एक विधि का उपयोग नहीं करते जबकि कई प्रकार की विधियों का उपयोग करते हैं।
  • भगवान अपने भक्त पांडवों पर अपनी कृपा बरसाते हैं और अगाध प्रेम को भक्तों के सम्मुख प्रकट करते हैं।

अडियेन् अमिता रामानुजदासी

आधार: https://srivaishnavagranthams.wordpress.com/2023/10/13/krishna-leela-37/

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